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Showing posts from February, 2017

Srila Bhakti Ballabha Tirtha Goswami Maharaj

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पवित्र कार्तिक महीने में — वृज दर्शन — श्रीचक्रेश्वर महादेव (चाकलेश्वर महादेव) गोवर्धन - मानसी गंगा के उत्तरी तट पर चक्रेश्वर महादेव जी हैं। श्रीमहादेव जी के मन्दिर के सामने एक प्राचीन नीम का पेड़ है। जिसके नीचे श्रील सनातन गोस्वामी जी की भजन कुटीर है। चक्रतीर्थ में चाकलेश्वर महादेवजी की इच्छा से श्रील सनातन गोस्वामीजी रहते थे व भजन करते थे। वे प्रतिदिन श्रीगोवर्धन परिक्रमा करते थे। श्रील सनातन गोस्वामी जी जब वृद्ध हो गये तब भी जैसे-तैसे गोवर्धन परिक्रमा करते थे। सनातन गोस्वामीजी का इतना परिश्रम व क्लान्ति देखकर गोपीनाथजी से रहा न गया और वे एक गोप बालक का वेश धारण करके श्रीसनातन गोस्वामी जी के पास आये। उस समय सनातानजी परिक्रमा करके थके हुये थे। उनका शरीर पसीने से लथपथ था। गोपवेशधारी गोपीनाथजी अपने उत्तरीय वस्त्र से सनातन गोस्वामी जी पर हवा करने लगे। गोपीनाथजी के हवा करने से सनातन जी के शरीर का सारा पसीना सूख गया और उनकी सारी थकान भी मिट गयी। तभी छद्मवेशधारी गोप बालक गोवर्धन के ऊपर चढ़ गया और वहाँ से श्रीकृष्ण के चरण चिन्ह से अंकित गोवर्धन शिला ले आया तथा श्रील सनतान गोस्वामी
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उस समय आपको आचार्य नियुक्त किया गया था। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी बताते हैं कि भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के प्रिय श्रील रूप गोस्वामी व श्रील सनातन गोस्वामी जी के छोटे भाई के पुत्र श्रील जीव गोस्वामी जी को उनकी वैष्णवता और उनकी विद्वता को देखकर उड़ीसा, बंगाल तथा मथुरा मण्डल के गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का सर्वश्रेष्ठ आचार्य नियुक्त किया गया था। आप सभी को श्रीश्रीगौर सुन्दर की प्रचारित शुद्ध-भक्ति की बात समझाते व सभी से हरि भजन कराते। आपने बहुत से ग्रन्थ लिखे। उनमें से एक है -- भक्ति सन्दर्भ।   आप उसमें बताते हैं -  इस कलियुग में कीर्तन भक्ति के अतिरिक्त अन्य और भक्ति साधनों का अनुष्ठान करना हो तो उन्हें कीर्तन भक्ति के सहयोग से ही करना चाहिये।       यद्यप्यन्या भक्तिः कलौ कर्तव्या,   तदा कीर्तनाख्य - भक्ति - संयोगेनैव ।  श्रील जीव गोस्वामी जी ने ही सबको यह बताया की हरिनाम के जप से कीर्तन का 100 गुना ज्यादा फायदा होता है। तो क्यों न, कीर्तन किया जाये! श्रील हरिदास ठाकुर जी नित्यप्रति जो तीन लाख हरिनाम किया करते थे, उसमें पहला 1 लाख हरिनाम उच्च स्व

सबका प्रिय डाक्टर

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सबका प्रिय डाक्टर श्रीइन्द्रद्युम्न स्वामी के लेखों से - अप्रैल, 1996 - बात उन दिनों की है जब मैं बोस्नीया के साराजेवो में युद्ध के बाद एक टूटे-फूटे हस्पताल में डा. नाकास से मिला। कुछ मुसलिम सैनिकों ने भक्तों की टोली पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। स्वस्थ भक्तों को मन्दिर में भेज कर मैं घायलों को देखने हस्पताल आया था। जब डा. नाकास को मेरे आने की सूचना मिली तो वे मुझे मिलने आये। उन्होंने कहा - आपके लोगों के ज़ख्म गहरे हैं किन्तु वे बच जायेंगे। मैं एक मुसलमान हूँ किन्तु मुझे मेरे लोगों की इन हरकतों पर शर्म आती है। युद्ध तो समाप्त हो गया है किन्तु वे फिर भी विदेशियों पर हमला कर रहे हैं। कृपया मुझे क्षमा कर दें। अपना हाथ बढ़ाते हुये उन्होंने मेरा हाथ थामा और बड़े प्यार से कहा - हम सब भाई-भाई हैं। मैं उनके प्यार भरे व्यवहार से अवाक था और मैंने कहा - आप का कोई दोष नहीं है, ना ही मुस्लिम धर्म का। ये तो कुछ आवांछित तत्वों के कारण हो रहा है। फिर वे मरीज़ों को देखने चले गये। इतने में वही सैनिक हस्पताल में आ गये। उन्होंने मुझे घेर लिया। इससे पहले की वो कुछ करते, डा. नाक

वह तो केवल ‘पैसा’ ‘पैसा’ ही कहता रहता है।

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वह तो केवल ‘पैसा’ ‘पैसा’ ही कहता रहता है। जगद्गुरु नित्यलीलाप्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी अपने समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे। आपने उस समय के अनेकों दिग्गजों को श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की तरह बहुत सम्मान देते हुए, शास्त्रार्थ में परास्त किया था। आप कहा करते थे मेरी नज़र में श्रीमद्भागवतम् का तात्पर्य अगर कोई ठीक ढंग से जानने वाला है तो वे हैं श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी। कभी कभी आप यह भी कहा करते थे कि श्रीमद्भागवत के सर्वोत्तम विद्वान श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी हैं। हालांकि दुनियावी दृष्टि से श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी अपने हस्ताक्षर भी ठीक से नहीं कर सकते थे।                                                                                                           एक बार कुछ व्यक्तियों ने एक प्रसिद्ध भागवत की व्याख्या करने वाले पाठक की महिमा बाबा जी को सुनाई। बाबाजी महाराज तो अन्तर्यामी थे,  वे उस पाठक  के  पैसे के बदले पाठ करने के उद्देश्य को जान गये  और उन्होंने कहा, 'वह भागवत श

भगवान के शूकर अवतार को क्या भोग लगता है?

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भगवान के शूकर अवतार को क्या भोग लगता है?   वराह अवतार दशावतारों में तीसरे अवतार हैं। श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी अपनी पुस्तक दशावतार में बताते हैं कि भगवान का ये अवतार दो बार हुआ। स्वयंभुव-मन्वन्तर में भगवान वराह ने ब्रह्मा की नाक से प्रकट् होकर पृथ्वी को समुद्र के तल से ऊपर उठाया था। दूसरी बार आप छठे (चक्शुश-मन्वन्तर) में प्रकट् हुए जब आपने पृथ्वी को बचाते हुए दैत्य हिरण्याक्ष का वध किया था। किसी किसी को ऐसा संशय है कि भगवान वराह को क्या भोग लगाया जाता है क्योंकि सुअर गंदगी खाता है ? पहली बात तो यह की भगवान के सभी अवतार दिव्य होते हैं, सर्वशक्तिमान होते हैं, व गुणों की खान होते हैं। दूसरा अर्चन के नियमानुसार ही भगवान को भोग लगता है। अर्थात् भक्त जो स्वयं खाता है, वही पवित्र भाव से अपने इष्टदेव को अर्पण करने के बाद, स्वयं खाता है। तीसरी बात, भगवान का वराह अवतार जंगली शूकर के रूप में होता है, न की शहरी सूअर के रूप में। और जंगली वराह (शूकर) मल-भोजी नहीं होता। एक और बात, जम्मू-कशमीर, दक्षिण भारत, इत्यादी में दशावतारों के मन्दिर पाये जाते हैं, वहाँ पर सभी में

हमारे व्यवहार से बच्चों पर बहुत असर पड़ता है।

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हमारे व्यवहार से बच्चों पर बहुत असर पड़ता है। वर्तमान समाज़ में माता-पिता एक बात से परेशान हैंं। वो यह कि बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। उल्ट जवाब देते हैं। मान-सम्मान की बात भूल ही जायेंं। ऐसे में उन्हें सूझता ही नहीं कि क्या करें। कुछ चिन्तन करने पर इस समस्या के कारण का पता चल सकता है। प्राचीन काल की बात है कि एक बार एक राहगीर भारत के भ्रमण पर था। मार्ग में उसे प्यास लगी। दूर-दूर तक कोई आबादी न देख वह प्यास से तड़प उठा। काफी चलने पर उसे एक छोटा स घर दिखाई दिया। यह सोचकर कि वहाँ पानी ज़रूर मिलेगा, वह घर के नज़दीक पहुँचा तो उसे गालियों की आवाज़ सुनाई दीं। रुक कर उसने देखा कि वहाँ बरामदे से एक तोता उसकी ओर देखकर उसे गालियाँ दे रहा है और कह रहा है -- तू क्या सोचता है कि मेरा मालिक यहाँ नहीं है, इसलिए तू चोरी करेगा। अभी मेरा मालिक आयेगा और तेरा सिर कलम कर देगा। मैं पिंजरे में बंद हूँ नहीं तो तेरी आँखें नोच डालता। तोते को ऐसे बोलते देख राहगीर घबरा गया और सोचने लगा कि यही इतना क्रूर है तो इसका मालिक कितना क्रूर होगा? वह चुपचाप वहाँ से चला गया। प्यास के मारे उसका बुरा हाल था। कुछ दूर चलने पर